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Wednesday, September 12, 2018

हड़प्पा कालीन आर्थिक जीवन


हड़प्पा कालीन आर्थिक जीवन -


  1. हड़प्पा कालीन आर्थिक जीवन को निम्न भागो के आधार पर व्यक्त किया जाता है -
  2. कृषि
  3. पशुपालन
  4. शिल्प व् उद्योग धंधे
  5. मुहरे
  6. लिपि
  7. व्यापार तथा वाणिज्य


कृषि -


  • सिंधु घाटी सभ्यता के लोग सिंधु व इसकी सहायक नदियों के किनारे  उपजाऊ भूमि में खेती करते थे।
  • फसल - ये लोग नवंबर में  बोकर मार्च में काटते थे। अर्थात रवी की फसल उगाते थे।
  • मुख्य फसले - इनकी मुख्य नौ फसले थी - १. गेंहू  २. जौ  ३. कपास   ४. तरबूज  ५. मटर   ६. राइ   ७. सरसो  ८. खरबूजा   ९. तिल
  • रागी , ज्वार तथा कोदी के साक्ष्य गुजरात के रोजदी से प्राप्त हुए है।
  • बाजरे के साक्ष्य लोथल से प्राप्त हुए है।


पशुपालन -

  • महत्व - पशुपालन का विशेष प्रयोग कृषि ,  परिवहन, क्रय -विक्रय, तथा भोजन आदि के लिए करते थे।
  • जनकरी - गाय , बैल, भैंस , बकरी , कुत्ता , बिल्ली, ऊंट , हाथी , व्याघ्र , बारहसिंघा , आदि।
  • गाय , ऊंट तथा घोडा का अंकन मुहरों नहीं मिलता है।
  • घोडा के साक्ष्य तीन स्थानों से प्राप्त हुए है। -
  • १. सुरकोतड़ा - यह से घोड़े का कंकाल प्राप्त हुआ है।
  • २. लोथल -  घोडे का जबड़ा प्राप्त हुआ है।
  • ३. रानागुंडई -  यह से दन्त प्राप्त हुए है।
  • प्रमुख पशु - इस सभ्यता के लोगो का प्रमुख पशु एक सींघ वाला बैल था।
  • सिंह का अंकन सिंधु सभ्यता की मुहर में नहीं जबकि मेसोपोटामिया की सभ्यता में है।


उद्योग -


  • कपड़ा उद्योग - यह हड़प्पा वासियो का प्रमुख उद्योग था।
  • मृदभांड (बर्तन) - ये लोग मिटटी तथा धातु से बने बर्तन का निर्माण करते थे। इनके बर्तन चाक तथा हाथ दोनों से निर्मित होते थे। बर्तनो की रंगाई में लाल रंग का प्रयोग किया जाता था। कुछ बर्तनो पर काले रंग की पुष्पकर ज्यामितीय भी प्राप्त हुई है।
  • मनका उद्योग - मिटटी , गोमद , फिरोजा , लाल पत्थर , चांदी तथा सोने के बने मनको का प्रयोग  होता था। मनके बनाने के कारखाने के साक्ष्य लोथल तथा चन्हूदड़ो से मिले है।
  • सीप उद्योग - लाथल तथा बालकोट से सीप उद्योग के साक्ष्य मिले है।


व्यापर एवं वाणिज्य -


  • कश्मीर ,  कोलार , काठियावाड़ तथा बलूचिस्तान से अंतराज्यीय व्यापर था।
  • सुमेरिया (मेसोपोटामिया) , मिस्र , फारस खाड़ी , तथा अफगानिस्तान एवं ईरान क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय व्यापर के साक्ष्य मिलते है।
  • सुमेरिया से मुहरे , संस्कृति , तथा कला का आदान - प्रदान  साक्ष्य प्राप्त हुए है जो की विकसित व्यापर का उदहारण है।
  • गुजरात से मिस्र की ममी का मॉडल प्राप्त हुआ है।  जो की इस सभ्यता के मिस्र से व्यापारिक सम्बन्धो को दर्शाता है किन्तु बीच अल्प  व्यापर के साक्ष्य मिले है।
  • फारस की खाड़ी से प्राप्त सारगोन का अभिलेख जिसमे की बहरीन, बलूचिस्तान , तथा सिंधु घाटी के नामो का जिक्र आया है जो की हड़प्पा सभ्यता के सम्बन्ध को फारस के साथ दर्शाता है।
  • नोट - बहरीन के उपनाम - १. सूर्योदय का देश २. साफ सुथरे नगरों का देश  ३. हाथियों का देश।
  • ये लोग मुख्यतः लाजवर्दी , मणि, चांदी , फ़िरोज़ा तथा सीसा अदि वस्तुए अफगानिस्तान तथा ईरान के आयात करते थे।
  • सीप के बने सामान , हाथी दन्त के बने पैमाने , वस्त्र तथा मनके अन्य देशो को निर्यात करते थे।


मुहरे -


  • 2500मुहरे हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त हुई है।  जिनमे से 1200 से अधिक मोहेंजोदड़ो से  प्राप्त हुई है। मोहेंजोदड़ो से प्राप्त सभी मुहरे वर्गाकार है। 
  • सर्वाधिक अभिलेखीय मुहरे हड़प्पा  से प्राप्त हुई है। 
  • ये मुख्यतः सेलखड़ी से बनी थी। साथ ही कांचली , मिटटी , गोमद से बनी मुहरे भी प्राप्त हुई है। 
  • आयताकार, वर्गाकार , तथा बेलनाकार मुहरे प्राप्त हुई है। सबसे अधिक वर्गाकार मुहरे प्राप्त हुई है। 
  • ये मुहरे लिपिक है जिनमे पशुछाप , पछि छाप , तथा पेड़ पौधों आदि की छाप का प्रयोग किया गया है। 


लिपि -


  • हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है। 
  • इस लिपि की सर्वप्रथम जानकारी सं 1853 में हुई। 
  • इसकी संपूर्ण जानकारी सं 1923 में तक प्राप्त हो सकी। 
  • इस लिपि में कुल 64 चिन्ह है। 
  • चित्राक्षर - 250 से 400 अक्षर है।  अंग्रेजी के U आकर का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है। मछली चित्र का भी प्रयोग किया गया है। 
  • इस लिपि को गोत्रिका या ब्रोस्टोफेनडम कहते है। 
  • इस लिपि को दाएं से बाएं , फिर बाएं से दाएं , फिर दाएं से बाये इस प्रकार लिखा जाता है। 


परिवहन -


  • जलमार्ग - जलमार्ग के लिए प्रमुख बंदरगाह थे लोथल , मेघम , भागतराव ,तथा बालाकोट। 
  • स्थलमार्ग - ये लोग स्थलमार्ग में मुख्यतः ताम्बे की इक्का गाड़ी तथा बैलगाड़ी का  प्रयोग करते थे। 

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