मगध का उत्कर्ष-
मगध में निम्नलिखित पांच राजवंशों का वर्णन प्रमुख रूप से आता है।
- वृहद्रथ वंश
- हर्यक वंश
- शिशुनाग वंश
- नंद वंश
- मौर्य वंश
बृहद्रथ वंश-
इस वंश का वर्णन पुराणों एवं महाभारत मिलता है।हर्यक वंश-
इस वंश के प्रमुख राजा इस प्रकार हैं-- बिम्बसार
- अजातशत्रु
- उदायिन( उदयभद्र)
- अनिरुद्ध
- मुंडक
- नागदशक या दर्शक
शिशुनाग वंश - राजा निम्न प्रकार है
- शिशुनाग
- कालाशोक या काकवर्ण
नंद वंश-
नंद वंश के राजा निम्न प्रकार हैं- महानंदिन
- महापद्मनन्द
- घनानंद
मौर्य वंश
इस वंश के राजा निम्न प्रकार है- चंद्रगुप्त मौर्य
- बिंदुसार
- अशोक
आखिर मगध ही साम्राज्य क्यों बना-
16 महाजनपदों में केवल मगध ही उभर कर सामने आया और एक महान साम्राज्य बना जिसके कुछ प्रमुख कारण निम्नवत है-आर्थिक कारण-
- गंगा नदी घाटी के मध्य में स्थित होने के कारण यह महाजनपद कृषि क्षेत्र की दृष्टि से अत्यंत अनुकूल परिस्थितियों में था। यहां की दोमट मिट्टी अत्यंत उपजाऊ थी तथा बहु किस्म की फसलें उत्पादित की जाती थी।
- धान की रोपनी पद्धति से पैदावार प्रारंभ हुई।
- यहां से कृषि पंचांग मिला है।
- लोहे का बहुत बड़ी मात्रा में कृषि में प्रयोग किया गया।
- अधिक कृषि उत्पादन से राज्य के आय में वृद्धि हुई तथा प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत हुई।
- भोजन आपूर्ति में सुनिश्चितता आयी , जिससे विशेषज्ञों के वर्ग का विकास हुआ तथा विविध प्रकार के भाषाओं का विकास हुआ।
- बढ़ती हुई जनसंख्या से सैन्य आधार को मजबूती मिली।
- यहां पर उपस्थित लोहे और तांबे की खाने अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रखती हैं क्योंकि इससे मगध में हथियार बनाने के मामले में स्वनिर्भरता आई।
- मगध राज्य का बहुत बड़ा हिस्सा जंगल था जिससे यहां पर हाथी तथा लकड़ियों की उपलब्धता थी।
- मुद्रा का प्रचलन- आहत सिक्कों का प्रचलन हुआ जिससे व्यापारिक श्रेणी का निर्माण हुआ।
भौगोलिक कारण-
- मगध की राजधानी राजगृह या गिरिव्रज पांच पहाड़ियों से गिरी थी तथा पाटलिपुत्र भी एक नदी दुर्ग था अतः दोनों राजधानियां ही सुदृढ़ अवस्था में थी।
- नदी जलमार्गों पर अधिपत्य करके यातायात आंतरिक व्यापार व सैन्य संचालन में उपयोग किया गया।
राजनीतिक कारण-
- मगध को लगातार योग एवं महत्वकांशी शासक मिलते गए।
- मगध शासकों ने विभिन्न प्रकार की कूटनीति का प्रयोग किया जैसे वैवाहिक नीति, कूटनीतिक नीति, मित्रवत नीति , युद्ध नीति तथा फूटनीति।
- मगध साम्राज्य में कूटनीतिज्ञों की भी उपलब्धता बनी रही जैसे - सुनिधि , दीर्घचारण , वज्जसार तथा चाणक्य।
सांस्कृतिक कारण-
- मगध राज्य पूर्वी क्षेत्र में पड़ने के कारण इसका आर्यकरण बहुत बाद मे हुआ जिससे वैदिक मान्यता तो पूर्ण रूप से विकसित थी किंतु पाखंड नहीं पनप पाया था जिसका श्रेष्ठतम् उदाहरण चाणक्य नीति में देखने को मिलता है।
आर्यकरण-
वैदिक मान्यताओं वेदों को मानने वाले लोग कहलाते थे तथा उनकी व्यवस्था को आर्यकरण कहा। गया वेदों में वर्ण व्यवस्था थी। जाति व्यवस्था नहीं अर्थात कर्म प्रधानता थी पाखंड की कोई जगह नहीं।
बृहद्रथ वंश-
- इस वंश का वर्णन पुराण महाभारत में आता है
- मगध का प्रथम शासक बृहद्रथ था।
हर्यक वंश पितृ हंता वंश-
बिंबसार
हर्यक वंश का संस्थापक था इसके अन्य नाम हैं क्षेत्रोंजस
मत्स्यपुराण व श्रेणिक जैन साहित्य के अनुसार इसके अधिकार में 80000 गांव थेइसमें तीन नीति से साम्राज्य का विस्तार किया।
मित्रवत नीति -अवंति नरेश चंद प्रद्योत की पीलिया रोग को दूर करने के लिए बिम्बसार ने अपने राजवैद्य जीवक को भेजा।
गंधार नरेश पुष्करसारिन के दरबार में एक दूत भेजा।
वैवाहिक नीति - बिम्बसार की 500 रानियां थी परंतु 3 को प्रमाणिकता दी गई है।
महाकौशला से विवाह कौशल (नरेश प्रसेनजित की बहन)
अवध नरेश चेटक की पुत्री चेल्लाना से विवाह
मद्र राजकुमारी क्षेमा से विवाह
युद्ध नीति
अंग पर विजय
बिम्बसार केदो सलाहकार प्रमुख थे सुनीधि और दीर्घचारक।
अजातशत्रु-
- अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या करके मगध के साम्राज्य पर बैठा।
- इसे कुणिक उपनाम से भी जाना जाता है।
- इसके गद्दी में बैठने के 8 वें वर्ष महात्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण (मृत्यु ) प्राप्त हुई इसलिए राजगृह की सतकरणी गुफा में अजातशत्रु के संरक्षण में महाकश्यप की अध्यक्षता में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ।
- जलमार्ग के महत्व को समझकर नदी दुर्ग की संकल्पना के रूप में पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाने का स्वप्न अजातशत्रु का ही था किंतु है इसे पूरा नहीं कर सका।
- अजातशत्रु ने अवंती महाजनपद के डर से राजगृह मे दुर्गीकरण का निर्माण किया।
- अजातशत्रु का सलाहकार वष्सकार था।
- अजातशत्रु प्रसनजीत के मध्य युद्ध में आजाद शत्रु की विजय हुई तथा काशी पुन: मगध का हिस्सा बना लिया गया प्रसेनजित की पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से हुआ।
- अजातशत्रु का वज्जि संघ के मध्य युद्ध-
- अजातशत्रु के सलाहकार वषट्कार ने वज्जि के आठों राज्य संघों में फूट डलवा दी।
- इस युद्ध में रथमूसल (आधुनिक तोप की तरह) और महाशिलाकंटक (बहुत बड़े पत्थर प्रक्षेपण) हथियारों का प्रयोग किया गया।
- इस युद्ध के समय आजीवक संप्रदाय के संस्थापक मक्खलपुत्र गाेषाल की मृत्यु हो गई।
- वज्जि संघ का मगध में विलय हो गया।
- कौशल का विलय-
- प्रसनजीत के पुत्र विदब्भू की मृत्यु के बाद कौशल मगध का हिस्सा बन गया।
उदायिन-
- उदायिन ने अपने पिता अजातशत्रु की हत्या करके मगध की गद्दी में बैठा।
- उदायिन ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र को बनाया
- उदायिन जैन एवं बौद्ध दोनों धर्मों का सम्मान करता था।
दर्शक या नागदशक-
इसकी हत्या बनारस के राज्यपाल शिशुनाग ने की तथा शिशुनाग वंश की स्थापना की।शिशुनाग वंश-
शिशुनाग-
- मगध साम्राज्य में अवंती और वत्स का विलय शिशुनाग ने किया।
- इसने पाटलिपुत्र के अतिरिक्त वैशाली को भी अपनी राजधानी बनाया था कि वज्जि संघ पर नियंत्रण रखा जा सके।
कालाशोक-
- कालाशोक को दिव्यावदान जैन ग्रंथ में काकवर्ण भी कहा गया है।
- वैशाली से पुणे पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया
- परिनिर्वाण के सौ वर्ष पूरे होने पर अपने संरक्षण में सर्वाकमीर की अध्यक्षता में बौद्धों की द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन वैशाली में करवाया।
नंद वंश-
महानंदिम -
- महानंदीम ने कालाशोक की हत्या करके नंद वंश की स्थापना की।
- महानंदिन कालाशोक की दासी का पुत्र था।
महापद्मनंद-
- महापद्मनंद के कुछ उपनाम निम्नवत है-
- सर्वक्षत्रोसंहारक
- भार्गव
- अपरो परशुराम
- एकराट/एकक्षत्र/ सार्वभौम
- जन्म से ब्राह्मण था किंतु उसने जैन धर्म को अपनाया।
- कलिंग का खारवेल अभिलेख में इसका वर्णन है जिसमें लिखा है कि उसने कलिंग पर हमला किया और कलिंग विजय की और वहां एक तमसुली नहर का निर्माण कराया। जो कि नहरों का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य है।
- कलिंग विजय के दौरान जिनसेन की मूर्ति कलिंग से पाटलिपुत्र ले आया।
- पाणिनि पाणिनि अष्टाध्यायी के रचयिता थे जोकि महापद्मनंद के समकालीन थे।
घनानंद
- यह नंद वंश का अंतिम शासक था
- घनानंद अत्यंत क्रूर शासक था जिसने जनता पर नए नए कर लगा दिए जिस से जनता त्रस्त थी जिसका परिणाम विद्रोह के रूप में चाणक्य और चंद्रगुप्त द्वारा मौर्य साम्राज्य की स्थापना थी।
- सिकंदर का आक्रमण जब भारत में हुआ मगध का शासक घनानंद ही था।
- यूनानी ग्रंथों में इसे अग्रमीज कहा गया है।
- चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने घनानंद को हराकर इसकी हत्या करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
- शकटाल और स्थूलभद्र नामक अमात्य घनानंद के दरबार में थे
- इस के दरबार में कुछ विद्वान जैसे कात्यायन, वर्ष, उपवर्ण, वरुरूचि थे।
- कात्यायन की पुस्तक का नाम वर्तिका है।
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