👉 हवन का महत्व
फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की जिसमें उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है। जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्ध करती है।
इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।
गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।
टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया कि यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये तथा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।
हवन की महत्ता देखते हुए *राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ* के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की। क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणु नाश होता है या नही ?
उन्होंने ग्रंथों में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु नाश करती है।
फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डालकर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर ९४ % कम हो गया।
यही नहीं उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओं का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था।
बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार किए गये हवन के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (research journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है।
रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।
👉 इस जानकारी से सभी को अवगत कराएँ। हवन करने से न सिर्फ भगवान खुश होते हैं बल्कि घर की शुद्धि भी होती है।
फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की जिसमें उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है। जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्ध करती है।
इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।
गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।
टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया कि यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये तथा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।
हवन की महत्ता देखते हुए *राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ* के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की। क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणु नाश होता है या नही ?
उन्होंने ग्रंथों में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु नाश करती है।
फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डालकर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर ९४ % कम हो गया।
यही नहीं उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओं का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था।
बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार किए गये हवन के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (research journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है।
रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।
👉 इस जानकारी से सभी को अवगत कराएँ। हवन करने से न सिर्फ भगवान खुश होते हैं बल्कि घर की शुद्धि भी होती है।
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