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Monday, January 28, 2019

4 # प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत

वैदिक साहित्य –

  • इसके अन्तर्गत वेद तथा उससे सम्बन्धित ग्रंथ , पुराण, महाकाव्य , स्मृति आदि है।
  • भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद का शाब्दिक अर्थ ग्यान है।
  • श्रवण परम्परा मे सुरक्षित होने के कारण इसे श्रुति भी कहा जाता है।
  • कालान्तर मे वेदव्यास ने वेदों को संकलित कर दिया।
  • वेद कुल चार है।– ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, तथा अथर्वेद। 

ऋग्वेद ( 1500 ई0पू0 – 1000 ई0पू0 )


  • भारत की सर्वाधिक प्राचीन रचना ऋग्वेद है।
  • ऋक् का अर्थ है- छन्दों तथा चरचणों से युक्त मंत्र
  • ऋग्वेद मंत्रों का एक संकलन ( संहिता ) है।जिन्हें Kyagy के अवसर पर देवताओं की स्तुति के लिए होतृ या होता ऋषियों द्वारा उच्चारित किया जाता था।
  • ऋग्वेद की अनेक संहिताओं मे से शाकल संहिता ही उपलब्ध है।
  • संहिता का अर्थ संग्रह या संकलन है।
  • सम्पूर्ण संहिता मे 10 मंडल तथा 1028 सूक्त है.
  • ऋग्वेद की 5 शाखाएँ है- शाकल, वाष्कल, आश्वलायन , शांखायन तथा मांडूक्य।
  • ऋग्वेद के कुल मंत्रों (ऋचाओं) की संख्या लगभग 10600 है।
  • ऋग्वेद मे इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गई।
  • ऋग्वेद का दो से सातवाँ मण्डल प्रामाणित तथा शेष प्रक्षिप्त माना जाता है।
  • बाद मे जोड़े गए दसवे मण्डल मे पहली बार शूद्रों का उल्लेख किया गया है। जिसे पुरुषसुक्त के नाम से जाना जाता है।
  • देवता सोम का उल्लेख नवें मंडल में हैं। लोकप्रिय गायत्री मंत्र ( सावित्री) का उल्लेख भी ऋग्वेद मे ही है।
  • गायत्री मंत्र जिसकी रचना विश्वामित्र ने की थी जिसका उल्लेख तीसरे मंडल मे है।


सामवेद ( 1000 ई0पू – 500 ई0पू0 )
  • साम का अर्थ संगीत या गान होता है।
  • इसमे Kyagy का अवसर पर गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह है।
  • इन मंत्रों को गाने वाला उद्गाता कहलाता है।
  • सामवेद के दो मुख्य भाग हैं- आर्चिक एवं गान।
  • सामवेद के प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है।
  • सामवेद की प्रमुख शाखायें है- कौथमीय, जैमनीय तथा राणायनीय।
  • सामवेद ने कुल 1549 ऋचायेँ है।
  • जिसमे मात्र 78 ही नयी हैं शेष ऋग्वेद से ली गयी है।
  • सामवेद को भारतीय संगीत का जनक माना जा सकता है।


यजुर्वेद –

  • यजुर् शब्द का अर्थ है – Kyagy। यजुर्वेद संहिता मे Kyagy को सम्पन्न कराने मे सहायक मंत्रो का संग्रह है। जिसका उच्चारण अध्वर्यु नामक पुरोहित करता था।
  • यह गद्य एवं पद्य दोनो शैली मे है।
  • यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान वेद है।
  • यजुर्वेद के दो भाग हैं – कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद ।
  • कृष्ण यजुर्वेद – इसमें छन्द बध्द मंत्र तथा गद्यात्मक वाक्य हैं।
  • कृष्ण यजुर्वेद की मुख्य शाखायें है। - तैत्तिरीय, काठक , मैत्रायणी , तथा कपिष्ठल।
  • शुक्ल यजुर्वेद – इसमें केवल मंत्र ही हैं। इसकी मुख्य शाखायें हैं – माध्यदिन, तथा काण्व।
  • इसकी संहिताओ को वाजसनेय भी कहा गया है। क्योकि वाजसेनी के पुत्र yagyavalk इसके दृष्टा थे।
  • इसमे कुल 40 अध्याय है।


अथर्ववेद –

  • उपर्युक्त तीनों संहितायें जहाँ परलोक सम्बन्धी विषयों का प्रतिपादन करती है। वहीं अथर्ववेद संहिता लौकिक फल प्रदान करने वाली है।
  • अथर्वा नामक ऋषि इसके प्रथम दृष्टा हैं, अत: उन्ही के नाम पर इसे अथर्ववेद कहा गया ।
  • इसके दूसरे दृष्टा आँगिरस ऋषि के नाम पर इसे अथर्वाँगिरसवेद भी कहा जाता है।
  • अथर्ववेद मे उस समय के समाज का चित्र मिलता है. जब आर्यों ने अनार्यों के अनेक धार्मिक विश्वासों को अपना लिया था ।
  • अथर्ववेद की दो शाखायें है। - पिप्पलाद तथा शौनक ।
  • इस संहिता मे कुल 20 कांड 731 लूक्त तथा 5987 मंत्रों का संग्रह है।
  • इसमे लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद से इद्धृत है.
  • इसकी कुछ ऋचायें yagya सम्बन्धी तथा ब्रह्म विद्या विषयक होलने के कारण इसे ब्रह्मवेद भी कहा जाता है.
  • लेकिन इसके अधिकांश मंत्र लौकिक जीवन से सम्बन्धित है।
  • रोग निवारण , तंत्र – मंत्र , जादू – टोना , शाप , वशीकरण , आशीर्वाद , स्तुति , प्रायश्चित , औषधि , अनुसंधान , विवाह आदि का वर्णन है।
  • आयुर्वेद के सिधदांत तथा व्यवहार जगत की अनेक बाते भी इसमे शामिल है।

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