प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत –
स्मारक एवं भवन
- उत्तर भारतीय मंदिरों की शैली नागर शैली कहलाती है।
- दक्षिण भारतीय मंदिरों की कला शैली द्रविड़ शैली कहलाती है।
- जबकि दक्षिणापथ के वे मंदिर जिनमें एवं द्रविड़ दोनो शैलियों का प्रयोग हुआ है।
- वेसर शैली के मंदिर कहलाते है।
- जावा के बोरोबुदुर मंदिर से वहां नवीं शताब्दी में महायान बौध्द धर्म की लोकप्रियता प्रमाणित होती है।
मूर्तिकला-
- कुषाण काल , गुप्त काल और गुप्तोत्तर काल मे जो मूर्तियां निर्मित की गयीं उनसे जन साधारण की धार्मिक आस्थाओं और मूर्तकला की जानकारी मिलती है।
- कुषाण कालीन मूर्तकला में जहां विदेशी प्रभाव अधिक है। वहीं गुप्तकालीन मूर्तिकला में स्वभाविकता परिलक्षित है। जहकि गुप्तोत्तर काल मे सांकेतिकता अधिक है।
- भरहूत बोधगया सांची और अमरावती की मूर्तिकला में जन सामान्य के जीवन की झांकी मिलती है।
चित्रकला-
- अजन्ता गुफा में उत्कीर्ण माता और शिशु तथा मरणासन्न राजकुमारी जैसे चित्रों की शाश्वता सर्वकालिक है। जिसमे गुप्तकालीन कलात्मक और तत्कालीन जीवन की झलक मिलती है।
- अवशेष-
- पाकिस्तान मे सोहन नदी घाटी में उत्खनन द्वारा प्राप्त पुरापाषाण युग के पत्थर के खुरदुरे हथियारों से अनुमान लगाया गया है कि भारत मे 4 लाख से 2 लाख वर्ष ईसा पूर्व मानव रहता था।
- 10 से 6 हजार वर्ष ई0 पू0 वह कृषि कार्य, पशुपालन , कपड़ा बुनना, मिट्टी के बर्तन बनाना तथा पत्थर के चिकने औजार बनाना सीख गया था।
- गंगा यमुना के दोआब में पहले काले और लाल मृदभांड औऱ फिर चित्रित भूरे रंग के मृदभांड प्राप्त हुए है।
- मोहनजोदड़ो मे 500 से अधिक मुहरें प्राप्त हुई है जो हड़प्पा संस्कृति के निवासियों के धार्मिक विश्वासों की ओर इंगित करती है.
- बसाढ़ ( प्रारम्भिक वैशाली ) से 274 मिट्टी की मुहरे मिली है।
- कौशाम्बी मे व्यापक स्तर पर किये गये उत्खनन कार्य मे उदयन का राजप्रासाद तथा घोषिताराम नामक एक विहार मिला है।
- अतरंजीखेड़ा आदि की खुदाइयों से जानकारी मिलती है कि देश मे लोहे का प्रयोग ई0पू0 1000 के लगभग आरम्भ हो गया था।
- रोमिला थापर के अनुसार लोहे का उपयोग 800 ई0 पू0 में आरम्भ हुआ।
- दक्षिण भारत मे अरिकमेडु नामक स्थल की खुदाई से रोमन सिक्के , दीप का टुकड़ा , तथा बर्तन आदि मिले है। जिससे यह पुष्ट हुआ है कि ईसा की आरम्भिक शताब्दियों मे रोम तथा दक्षिण भारत के मध्य घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे।
अवशेष-
- पाकिस्तान मे सोहन नदी घाटी में उत्खनन द्वारा प्राप्त पुरापाषाण युग के पत्थर के खुरदुरे हथियारों से अनुमान लगाया गया है कि भारत मे 4 लाख से 2 लाख वर्ष ईसा पूर्व मानव रहता था।
- 10 से 6 हजार वर्ष ई0 पू0 वह कृषि कार्य, पशुपालन , कपड़ा बुनना, मिट्टी के बर्तन बनाना तथा पत्थर के चिकने औजार बनाना सीख गया था।
- गंगा यमुना के दोआब में पहले काले और लाल मृदभांड औऱ फिर चित्रित भूरे रंग के मृदभांड प्राप्त हुए है।
- मोहनजोदड़ो मे 500 से अधिक मुहरें प्राप्त हुई है जो हड़प्पा संस्कृति के निवासियों के धार्मिक विश्वासों की ओर इंगित करती है.
- बसाढ़ ( प्रारम्भिक वैशाली ) से 274 मिट्टी की मुहरे मिली है।
- कौशाम्बी मे व्यापक स्तर पर किये गये उत्खनन कार्य मे उदयन का राजप्रासाद तथा घोषिताराम नामक एक विहार मिला है।
- अतरंजीखेड़ा आदि की खुदाइयों से जानकारी मिलती है कि देश मे लोहे का प्रयोग ई0पू0 1000 के लगभग आरम्भ हो गया था।
- रोमिला थापर के अनुसार लोहे का उपयोग 800 ई0 पू0 में आरम्भ हुआ।
- दक्षिण भारत मे अरिकमेडु नामक स्थल की खुदाई से रोमन सिक्के , दीप का टुकड़ा , तथा बर्तन आदि मिले है। जिससे यह पुष्ट हुआ है कि ईसा की आरम्भिक शताब्दियों मे रोम तथा दक्षिण भारत के मध्य घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे।
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