संविधान संशोधन की प्रक्रिया
संशोधन के आधार पर संविधान दो प्रकार का होता है
- लचीला संविधान - जिस देश के संविधान में कानून बनाने की प्रक्रिया और संशोधन की प्रक्रिया एक समान हो।
- कठोर संविधान - जिस देश के संविधान में कानून बनाने की प्रक्रिया और संशोधन की प्रक्रिया एक समान न हो।
- संशोधन की प्रक्रिया के आधार पर भारत का संविधान मिश्रित (कठोर तथा लचीला ) है।
- संविधान में संशोधन करने के लिए संशोधन विधेयक को संसद के किसी एक सदन ( लोकसभा या राज्यसभा ) में प्रस्तावित करना पड़ता है। तत्पश्चात विधेयक को संसद के दूसरे सदन में मंजूरी प्राप्त करने के लिए भेजा जाता है। तथा दोनों सदनों में मंजूरी मिल जाने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। तथा राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद संशोधन की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है।
- संविधान में संशोधन के लिये तीन प्रकार के बहुमत की प्रक्रिया का वर्णन है।
1. साधारण बहुमत द्वारा -
प्रक्रिया - संशोधन विधेयक पास करने के लिए प्रत्येक सदन में उपस्थित सांसदों की न्यूनतम संख्या सदन में कुल आवंटित सीटों के आधे से एक अधिक होनी चाहिए तथा उपस्थित कुल सदस्यों की संख्या के आधे से एक अधिक सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए।
अधिकार क्षेत्र - इस बहुमत द्वारा सामान्य प्रावधानों में परिवर्तन किया जा सकता है। जैसे - नागरिकता , संसदीय विशेषाधिकार , वेतन , नए राज्य निर्माण आदि।
2. विशेष बहुमत द्वारा -
प्रक्रिया - संशोधन विधेयक पास करने के लिए प्रत्येक सदन में उपस्थित सांसदों की न्यूनतम संख्या सदन में कुल आवंटित सीटों की दो - तिहाई होनी चाहिए तथा उपस्थित सांसदो की कुल संख्या का दो - तिहाई का समर्थन मिलना चाहिए।अधिकार क्षेत्र - सर्वाधिक संशोधन इसी प्रक्रिया के द्वारा होता है। जैसे - मूल अधिकार , मौलिक कर्त्तव्य , राज्य के निति निदेशक तत्त्व, तथा आपातकाल आदि।
नोट - सुप्रीम कोर्ट , हाई कोर्ट के जज , तथा महालेखापरीक्षक ( CAG ) को इसी प्रक्रिया के द्वारा हटाया जाता है।
3. विशेष बहुमत तथा 1/2 राज्यों की सहमति द्वारा -
प्रक्रिया - इस प्रक्रिया में संसद में विशेष बहुमत होने के साथ साथ कुल राज्यों के आधे राज्यों का समर्थंन प्राप्त होना चाहिए।अधिकार क्षेत्र - केंद्र तथा राज्य दोनों से सम्बंधित किसी मामले में परिवर्तन, जैसे - 7वीं अनुसूची , राष्ट्रपति निर्वाचन प्रक्रिया , संशोधान की प्रक्रिया तथा संसद में नए राज्य के प्रतिनिधित्व आदि से सम्बंधित मामलो में संशोधन करने के लिए इस प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है।
- संविधान में वर्णित अन्य प्रकार के बहुमत -
1. प्रभारी बहुमत -
प्रक्रिया - संसद में कुल आवंटित सीटों का 1/10 भाग की उपस्थिति होनी चाहिए। इस संख्या को कोरम भी कहते है।अधिकार क्षेत्र - यह संख्या किसी भी सदन की कार्यवाही के लिये अनिवार्य है। तथा कोरम में बहुमत के द्वारा लोकसभा स्पीकर को हटाया जा सकता है।
2. बहुमत 1/2 - इस बहुमत का प्रयोग सरकार बनाने में किया जाता है।
3. FPPS ( first pass post system )- इस प्रक्रिया का प्रयोग साधारण चुनावो में किया जाता है। जैसे -किसी विधानसभा क्षेत्र में कोई उम्मीदवार अन्य सभी उम्मीदवारों से अधिक वोट पता है जबकि कुल वोटो का 50% से कम पाता है, जीता हुआ घोषित किया जाता है।
- अनुच्छेद - 108 - राष्ट्रपति के बुलाने पर ही लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक होगी।
- संशोधन की सामान्य प्रक्रिया - सशोधन का प्रारम्भ विधेयक बनाकर ही होगा।
- संसद किसी भी भाग या अनुच्छेद में संशोधन कर है। किन्तु संविधान का मूल ढांचा नष्ट नहीं होना चाहिए।
- संशोधन केवल केंद्र सरकार ही कर सकती है।
- भारत में संशोधन के लिए जनमत संग्रह का प्रावधान नहीं है।
विश्लेषण -
महत्व -
- संविधान को नए जीवन से जोड़ने हेतु संशोधन आवश्यक है।
- संशोधन आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में सहायक है।
- इससे संविधान जनता की इच्छा का प्रतिबिम्ब बनता है।
समस्या -
- राजनैतिक पार्टिया अपने दलीय स्वार्थ हेतु संशोधन करती है।
- न्यायपालिका तथा कार्यपालिका में टकराओ की स्थिति उत्पन्न होती है।केंद्र तथा राज्य सरकारों के मध्य सम्बन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- कभी कभी किसी संशोधन में राज्यों का समर्थन देरी से मिलता है।
NOTE - व्यवहारतः समवर्ती सूची पर भी केंद्र सरकार ही कानून बनती है।
निष्कर्ष - संशोधन के द्वारा संविधान प्रगतिशील बना है। सामाजिक , आर्थिक , न्याय को बढ़ावा मिलता है। लेकिन अभी भी सकारात्मक प्रयासों की आवश्यकता है। जिससे कि सिद्धांत एवं व्यव्हार में अंतर समाप्त हो।
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